''अपनी भाषा'' एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संगठन है. संस्था का मूल कार्य समस्त भारतीय भाषाओं के बीच सेतु स्थापित कर उनके भीतर समानता के सूत्र खोजना है. यह संस्था प्रत्येक नागरिक को अपनी मातृभाषा के अलावा कोई एक अन्य भारतीय भाषा सीखने के लिए प्रेरित करती है. इसी कड़ी में हम प्रत्येक वर्ष एक ऐसे साहित्यकार को सम्मानित करते हैं जिन्होंने हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के बीच सेतु का काम किया हो.
वर्ष 2001 से संस्था द्वारा प्रतिवर्ष हिंदी तथा किसी अन्य भारतीय भाषा के बीच अनुवाद कार्य तथा अपने मौलिक लेखन द्वारा सेतु कायम करने वाले किसी एक रचनाकार को 'जस्टिस शारदाचरण मित्र स्मृति भाषा सेतु सम्मान' से विभूषित किया जाता है । जस्टिस शारदाचरण मित्र ने 1905 में 'एक लिपि विस्तार परिषद' की स्थापना की थी और उसकी ओर से 1917 तक उन्होंने 'देवनागर ' नामक मासिक पत्र निकालकर भारतीय भाषाओं को जोड़ने की दिशा में एक मिशाल कायम किया था। वे कलकत्ता हाई कोर्ट के जस्टिस और 'बंगीय साहित्य परिषद' के अध्यक्ष जैसे पदों को सुशोभित कर चुके थे।
संस्था अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम करती है तथा ज्वलंत विषयों पर बुलेटिन एवं हैंडबिल एवं समय -समय पर पुस्तक आदि का प्रकाशन करती है। संस्था की ओर से एक अनियतकालीन पत्रिका ''भाषा विमर्श'' का प्रकाशन भी किया जाता है ।
संस्था द्वारा भाषा समस्या से जुड़े गंभीर और ज्वलंत विषयों पर आयोजित संगोष्ठियों को महाश्वेता देवी, नीरेन्द्रनाथचक्रवर्ती, पवित्र सरकार, रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता, मैनेजर पान्डेय, प्रतिभा अग्रवाल, सुनील गंगोपाध्याय, कृष्ण बिहारीमिश्र, देवेश राय, चंद्रकांत बांदिवडेकर, शंकरलाल पुरोहित, प्रभाकर श्रोत्रिय, नवनीता देवसेन, कृष्णचंद्र भुइयां,कल्याणमल लोढ़ा, जवरीमल्ल पारख , हरिवंश, नवारुण भट्टाचार्य, रामदेव शुक्ल, अजय तिवारी, रविभूषण,बी.वै.ललिताम्बा, ममता कालिया, एन.विश्वनाथन, नितीश विश्वास, वी.रा.जगन्नाथन, रवीन्द्र कालिया, चमनलालआदि बांग्ला, ओड़िया, मराठी, तेलुगु, तमिल, पंजाबी, हिंदी , अंग्रेजी आदि भाषाओं के ख्यातिलब्ध साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी संबोधित कर चुके हैं।
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